जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय जल के क्षेत्र में चुनौतियां एवं निपटने के उपाय
संदर्भसामग्री/तथ्य सामग्री
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प्रेस विज्ञप्ति (जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय)
1) जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने जल के क्षेत्र में कई चुनौतियों का पता लगाया है। इनमें से कुछ सृजित सिंचाई क्षमता और उपयोग की गयी सिंचाई क्षमता में अंतर को समाप्त करना, भूमि जल का अति-दोहन, बाढ़ प्रबंध, सूखे को रोकना, विवाद निपटारा, बांध सुरक्षा, विश्वसनीय आंकड़ा उपलब्धता, गिरती जल गुणवत्ता आदि हैं। जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं।
2) प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) इस मंत्रालय की प्रमुख स्कीम है जिसे मिशन मोड में शुरू किया गया है। स्कीम प्राथमिकता वाली 99 परियोजनाओं में बांटी गयी है जिन्हें अलग-अलगसमय-सीमाओं में पूरा किया जाना है। पूरी परियोजना पर कुल संभावित खर्च 77595 करोड़ रूपए होगा जिसमें केन्द्र का हिस्सा 31342 करोड़ रूपए होगा । समूची परियोजना के पूरा हो जाने के बाद 76.03 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता उपयोग किए जाने की संभावना है। महाराष्ट्र की गोसीखुर्द (2.5 लाख हेक्टेयर) जैसी रूकी हुई कई परियोजनाओं को व्यवस्थित करके उन्हें समय पर पूरा करने योग्य बनाया गया है। पीएमकेएसवाई के अंतर्गत परियोजना का ब्यौरा इस प्रकार है:
श्रेणी
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परियोजनाओं की संख्या
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पूरा करने के लिए अपेक्षित धनराशि (करोड़ रूपए))
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केन्द्रीय हिस्सा (करोड़ रूपए)
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उपयोग की जाने वाली सिंचाई क्षमता (लाख हेक्टेयर)
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एआईबीपी
|
सीएडी
|
कुल
|
प्राथमिकता-I परियोजनाएं
(3/2017 तक पूरा किया जाना )
|
23
|
7956
|
5466
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13423
|
6535
|
14.53
|
प्राथमिकता-II परियोजनाएं
(3/2018 तक पूरा किया जाना )
|
31
|
8080
|
4825
|
12905
|
4269
|
12.95
|
प्राथमिकता -III परियोजनाएं(12/2019तक पूरा किया जाना )
|
45
|
32510
|
18757
|
51268
|
20538
|
48.55
|
कुल
|
99
|
48546
|
29049
|
77595
|
31342
|
76.03
|
उन परियोजनाओं की स्थिति के संबंध में ऑनलाईन सूचना के लिए पीएमकेएसवाई डेशबोर्ड भी शुरू किया गया है, जिन तक सामान्य लोग पहुंच सकते हैं।
3) 2016-17 के दौरान पीएमकेएसवाई के दौरान जारी धनराशि:
क्रम संख्या
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मद
|
जारी धनराशि –करोड़ रूपए
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1
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एआईबीपी
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3308
|
2
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सीएडी
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854
|
3
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पोलावरम परियोजना
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2514
|
4
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एलटीआईएफ से राज्य का हिस्सा
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3334
|
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कुल
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10010 करोड़ रूपए
|
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राज्य का बजट
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7870 करोड़ रूपए
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पाईप लाईन में परियोजनाएं
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1200 करोड़ रूपए
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एलटीआईएफ द्वारा पीएमकेएसवाई को दी गई कुल राशि
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19080 करोड़ रूपए
|
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4) ‘’हर खेत को पानी’’ और ‘’बूंद-बूंद से अधिक फसल’’ स्कीम के अंतर्गत महाराष्ट्र की 22 परियोजनाएं, ओडिशा की 6 परियोजनाएं, मध्य प्रदेश की 17 परियोजनाएं, (चरणों समेत) (कुल 45) फास्ट ट्रेक पर रखी गयी हैं जिनके निर्धारित समय-सीमा के पहले पूरा हो जाने की संभावना है। प्राथमिकता वाली परियोजनाओं के जरिए वर्ष 2016-17 में 14 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षमता के उपयोग की संभावना है। भूमि अधिग्रहण के मुद्दों के समाधान के लिए भूमिगत प्रेशर पाइपलाईनों को डालने जैसे नए उपाए अपनाए गए हैं। सीएडीडब्ल्यूएम कार्यक्रम के अंतर्गत प्रारम्भ में केवल 39 परियोजनाओं में से सीएडीडब्ल्यूएम- एचकेपीपी पर ध्यान केन्द्रित है- इस समय कमान क्षेत्र विकास- एचकेपीपी की 75 परियोजनाएं विभिन्न चरणों में है।
5) पोलावरम बहुउद्देशीय परियोजना (आंध्र प्रदेश/तेलंगाना) को फास्ट ट्रेक पर रखा गया है और इस परियोजना से 2.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई और 960 मे.वा. विद्युत उत्पादन होने की संभावना है। मई, 2014 से पोलावरम सिंचाई परियोजना, जो कि गोदावरी नदी पर एक बहुउद्देशीय परियोजना है, के समय से पहले पूरा करने हेतु आंध्र प्रदेश सरकार को 3349.70 करोड़ रूपए की राशि जारी की गई है।
6) सरदार सरोवर बांध (एसएसडी) को ऊंचा करना : एसएसडी के गेटों को नीचे करने से सक्रिय भण्डारण क्षमता 1565 एमसीएम से बढ़ कर 5740 एमसीएम हो जायेगी जिससे 4175 एमसीएम (267 प्रतिशत) की वृद्धि होगी। जल विद्युत उत्पादन वर्तमान में जो 1300 मेगावाट है, बढ़कर 1450 मेगावाट हो जायेगा जिससे वार्षिक उत्पादन में लगभग 1100 मिलियन यूनिट (अर्थात प्रतिवर्ष लगभग 400 करोड़ रूपए) की वृद्धि होगी। इसके अतिरिक्त, इस अतिरिक्त भंडारण क्षमता से 8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई हो पायेगी ।
7) सरकार ने नदियों को आपस में जोड़ने संबंधी परियोजनाओं को उच्च प्राथमिकता प्रदान की है, जिसके कारण केन बेतवा परियोजना को शीघ्र पूरा कर लिए जाने की संभावना है। सभी अनिवार्य स्वीकृतियां एवं सांविधिक स्वीकृतियां पदनामित प्राधिकारियों से प्राप्त कर ली गई है। अंतर-मंत्रालयी परामर्श हेतु परियोजना के कार्यान्वयन के लिए मसौदा मंत्रिमंडल टिप्पण परिचालित किया गया है और उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश राज्यों से उनके विचार प्राप्त करने हेतु प्रतियों को भी साझा किया गया है। केबीएलपी कार्यान्वयन हेतु ली जाने वाली पहली आईएलआर परियोजना है, जोकि सूखा प्रवण और पिछड़े बुंदेलखंड क्षेत्र में सिंचाई और पेयजल उपलब्ध कराएगी तथा विद्युत उत्पादन के अलावा केन बेसिन के अतिरिक्त जल को जल की कमी वाले बेतवा बेसिन में स्थांतरित करेगी। 2953 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) की सकल भंडारण क्षमता और 221 किलो मीटर लंबी मुख्य नहर के साथ-साथ 9 हजार हेक्टेयर के जलाशय आप्लावन क्षेत्र सहित 77 मीटर ऊंची दऊधान बांध प्रस्तावित है। केबीएलपी चरण-। मध्य प्रदेश के छतरपुर, टीकमगढ़ और पन्ना जिलों तथा उत्तर प्रदेश के महोबा, बांदा और झांसी जिलों में 5,15,215 हेक्टेयर (मध्य प्रदेश में 2,87,842 हेक्टेयर और उत्तर प्रदेश में 2,22,373 हेक्टेयर क्षेत्र) की कृष्य कमान क्षेत्र (सीसीए) में वार्षिक 6,35,661 हेक्टेयर क्षेत्र (मध्य प्रदेश में 3,69,881 हेक्टेयर और उत्तर प्रदेश में 2,65,780 हेक्टेयर क्षेत्र) के लिए सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराएगा। परियोजना उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 13.42 लाख जनसंख्या के लिए पेयजल आपूर्ति करने हेतु 49 एमसीएम जल उपलब्ध कराएगी। परियोजना से 78 मेगावाट विद्युत का भी उत्पादन होगा। जब परियोजना पूर्ण हो जाएगी, अतिरिक्त सिंचाई के रूप में मध्य प्रदेश की वर्तमान सिंचाई क्षमता में लगभग 10 प्रतिशत वृद्धि हो जाएगी।
8) पंचेश्वर परियोजना: माननीय प्रधानमंत्री के पहल के परिणाम स्वरूप शारदा नदी पर पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना के निष्पादन, प्रचालन और अनुरक्षण हेतु वर्ष 2014 में भारत और नेपाल द्वारा संयुक्त रूप से पंचेश्वर विकास प्राधिकरण की स्थापना की गई है। यह वर्तमान सरकार की एक नई पहल है। इस परियोजना से 5040 मे.वा. विद्युत उत्पादन और 4.3 लाख हेक्टेयर क्षेत्र (भारत में 2.6 लाख हेक्टेयर और नेपाल में 1.7 लाख हेक्टेयर क्षेत्र) की सिंचाई क्षमता सृजित होगी। परियोजना में 6 बीसीएम का भंडारण होगा; 5050 मेगावाट विद्युत का उत्पादन होगा, 4.3 लाख हेक्टेयर सिंचाई होगी,जिसमें से 2.6 लाख हेक्टेयर क्षेत्र भारत में है, इसकी कुल लागत 33108 करोड़ रूपए होगी। परियोजना से वार्षिक तौर पर 4,592 करोड़ रूपए का लाभ होगा जिसमें 3665 करोड़ रूपए का विद्युत लाभ, 837 करोड़ रूपए का सिंचाई लाभ और 90 करोड़ रूपए का बाढ़ संबंधी लाभ शामिल है। पंचेश्वर भंडारण बांध बाढ़ों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। वर्ष-दर-वर्ष बाढ़ों के कारण होने वाली तबाही और तत्संबंधी लागत से बचा जा सकेगा जिससे राष्ट्र को लाभ होगा। परियोजना से पर्यावरण प्रबंधन योजना के हिस्से रूप में इको-टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा। ज्यादातर साधन, श्रम शक्ति आदि भारत से होंगे और इसलिए परियोजना से भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचेगा।
9) उत्तरी कोयल परियोजना: 116 एमसीएम जल के भंडारण के लिए 67.86 मीटर ऊंचे और 343 मीटर लम्बें चिनाई बांध की योजना बनाई गयी है। परियोजना में सिंचाई के लिए बांध के 96 किलोमीटर अनुप्रवाह में, मोहम्मदगंज में 819.6 मीटर लम्बा बैराज, वितरिका प्रणाली के साथ मोहम्मदगंज बैराज के बायें और दायें किनारे से नहरों को निकाला जाना शामिल है। इस परियोजना से 44.0 एमसीएम पेयजल एवं औद्योगिक जल प्राप्त होने की संभावना है।
10) उत्तर-पूर्वी राज्य: उत्तरी-पूर्वी राज्यों के विकास पर भी ध्यान दिया गया है। कुछ महत्वपूर्ण विकास इस प्रकार हैं:
- ब्रह्मपुत्र बोर्ड का पुनर्गठन किया जा रहा है।
- 1.62 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई क्षमता तैयार करने हेतु पीएमकेएसवाई के तहत 617 करोड़ रूपए की शेष सीए सहित चार परियोजनाओं को शुरू किया गया है।
- अब तक बाढ़ और तट कटाव से माजुली, जोकि ब्रह्मपुत्र नदी पर विश्व की सबसे बड़ी निवास योग्य नदी द्वीप है, की सुरक्षा पर 184 करोड़ रूपए की राशि खर्च की गई है। अब भारत सरकार ने माजुली की सुरक्षा से संबंधित महत्वपूर्ण कार्यों के लिए 237 करोड़ रूपए की राशि वाली एक परियोजना को मंजूरी दी है।
11) राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना अप्रैल, 2016 में सरकार द्वारा अनुमोदित 3640 करोड़ रूपए की एक अग्रणी परियोजना है, जिसके माध्यम से देश के जल संसाधन प्रचालन और आयोजना को विश्वसनीय, सटीक और अखंडनीय स्वचालित आंकड़ा संग्रह और प्रसार के द्वारा आधुनिकीकृत किया जाएगा। वर्ष 2016-17 के लिए राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना के तहत राज्यों को 47.83 करोड़ रूपए की राशि जारी की गई थी। इसके अतिरिक्त, वर्ष 2017-18 के लिए राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना के तहत राज्यों को 124.42 करोड़ रूपए की राशि जारी किए जाने की प्रक्रिया चल रही है। यह वर्तमान सरकार की नई पहल है।
12) अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिकरण : मंत्रिमंडल ने साझी स्थापना वाले एकल अधिकरण के गठन के लिए मौजूदा अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 (पिछली बार 2002 में सशोधित) में संशोधन के लिए दिनांक 7.12.2016 को मंत्रिमंडल टिप्पणी अनुमोदित की है। अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद संशोधन विधेयक दिनांक 14.3.2017 को संसद में पेश किया है। यह 2014 से पहले, 10 वर्षों अथवा इससे अधिक की अवधि से विचाराधीन था।
13) बांधों की सुरक्षा और बांध से संबंधित आपदा को रोकना सुनिश्चित करने के लिए मजबूत सांस्थानिक और कानूनी ढांचे के लिए प्रावधान करने हेतु बांध सुरक्षा विधेयक तैयार किया गया है। विधेयक आवश्यक था क्योंकि भारत में 5200 से अधिक बांध हैं और उनमें से अनेक 50 वर्ष से अधिक पुराने हैं। विधेयक देश में बांधों की निगरानी, निरीक्षण, प्रचालन और अनुरक्षण हेतु प्रावधान करता है। अधिकतर राज्यों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा इस विधेयक का पुनरीक्षण किया गया है और अनुमोदन हेतु इसे मंत्रिमंडल के समक्ष जल्द ही लाया जा रहा है।
14) जुलाई, 2016 से नवम्बर, 2016 के बीच यूरोपीय संघ, ईजराइल, हंगरी और तंजानिया के साथ जल संसाधन प्रबंधन एवं विकास संबंधी समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित किया गया है। वर्तमान सरकार का यह एक नया प्रयास है।
15) राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन
क) जुलाई, 2016 से नवम्बर, 2016 के बीच यूरोपीय संघ, ईजराइल, हंगरी और तंजानिया के साथ जल संसाधन प्रबंधन एवं विकास संबंधी समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित किया गया है। वर्तमान सरकार का यह एक नया प्रयास है। नमामि गंगे कार्यक्रम को 100 प्रतिशत केन्द्र द्वारा वित्त पोषित कार्यक्रम बनाया गया है, जिसमें 15 वर्ष प्रचालन और अनुरक्षण संबंधी प्रावधान है।
ख) जनवरी, 2016 में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने सीवेज अवसंरचना के दीर्घावधि संतोषजनक निष्पादन सुनिश्चित करने के लक्ष्य सहित सीवेज अवसंरचना के निर्माण संबंधी सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) आधारित हाइब्रिड एन्विटी का अनुमोदन किया था।
ग) जनवरी, 2016 में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने “गंगा नदी (संरक्षण, सुरक्षा एवं प्रंबधन) प्राधिकरण आदेश, 2016” अनुमोदित किया था जोकि एनएमसीजी को एक स्वतंत्र और जवाबदेह रूप में अपने कार्य को करने हेतु सशक्त बनाता है और एनएमसीजी को ईपी अधिनियम के तहत एक प्राधिकरण के रूप में कुछ विनियामक शक्तियों सहित भी सक्षम बनाता है।
(घ) प्राधिकरण आदेश ईपी अधिनियम के तहत प्राधिकरण के रूप में राज्य गंगा समितियों और जिला गंगा समितियों के गठन के लिए भी प्रावधान करता है।
ङ) यथा संशोधन गंगा की मुख्य धारा के किनारे स्थित शहरों में नगर निगम सीवेज प्रबंधन का विवरण/स्थिति निम्नानुसार है:
क्र.
सं.
|
राज्य
|
कुल सीवरेज उत्पादन (एमएलडी)
|
कुल मौजूदा एसटीपी क्षमता(एमएलडी)
|
शोधन क्षमता अंतराल(एमएलडी)
|
कार्यान्वयन की जा रही परियोजनाएं (एमएलडी)
|
2016
|
2035
|
2016
|
2035
|
चल रही
|
निविदा दिया जा रहा है
|
अनुमोदित
|
प्रस्तावित
|
1
|
उत्तराखंड
|
160
|
210
|
83
|
79
|
128
|
1
|
113
|
19
|
0
|
2
|
उत्तर प्रदेश
|
1203
|
1688
|
811
|
428
|
878
|
390
|
50
|
72
|
158
|
3
|
बिहार
|
556
|
869
|
0
|
556
|
869
|
173
|
0
|
60
|
319
|
4
|
झारखंड
|
15
|
20
|
0
|
15
|
20
|
12
|
0
|
4
|
0
|
5
|
पश्चिम बंगाल
|
1586
|
1861
|
586
|
1031
|
1297
|
85
|
0
|
0
|
486
|
कुल
|
3520
|
4648
|
1480
|
2109
|
3192
|
661
|
163
|
155
|
963
|
43 शहर
|
20 शहर
|
7 शहर
|
8 शहर
|
20 शहर
|
च) गंगा की धारा के किनारे सीवेज शोधन कार्यों की प्रगति निम्नानुसार है:
छ) औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण और विनियमन की स्थिति निम्नानुसार है:
ज) इसके अतिरिक्त, गंगा किनारे स्थित गांवों में 11.04 लाख व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों (आईएचएचएल) का निर्माण किया गया है तथा 4274 गावों को खुले में शौच मुक्त घोषित किया गया है।
झ) संगम से पहले गंगा नदी की सहायक नदियों में जल की गुणवत्ता में निरंतर सुधार हुआ है। यह पाया गया है कि दहेला, बहेला, कोसी और रामगंगा नदियों में घुलित ऑक्सीजन स्तर बढ़ा है और जल के बीओडी स्तर में कमी हुई है।
ञ) वर्तमान सरकार द्वारा गंगा ग्राम गांवों में ग्रामीण स्वच्छता के लिए एक नई पहल शुरु की गई है तथा स्वच्छ भारत (ग्रामीण) के लिए कुल 578 करोड़ रूपए पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय को जारी किए गए हैं।
ट) ट्रेस स्किमर्स के उपयोग द्वारा 11 महत्वपूर्ण स्थलों पर नदी सतह सफाई कार्य शुरू किया जा रहा है।
ठ) व्यापक रूप से प्रदूषक का तत्काल समय बहिस्राव निगरानी स्टेशन शुरू किया गया था।
ड) 110 स्थलों पर मैनुएल जल गुणवत्ता निगरानी के अतिरिक्त 44 स्थलों पर गंगा की तत्काल समय जल गुणवत्ता निगरानी शुरू की गई है।
ढ) जैव विविधता कार्यक्रम के तहत नरौरा और सारनाथ में कछुओं के लिए 2 बचाव और पुनर्वास केन्द्र स्थापित किए गए हैं तथा पहली बार गंगा नदी के संपूर्ण क्षेत्र में गंगा के डॉल्फिन सहित जलीय जीव का व्यापक बेसलाइन सर्वेक्षण कार्य किया जा रहा है।
ण) नदी में पर्याप्त बहाव सुनिश्चित करने के लक्ष्य से 10 केन्द्रीय मंत्रालयों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए है। कई उपभोक्ता सेक्टरों में ई-बहाव को निर्धारित करने और जल उपयोग दक्षता को बेहतर बनाने के लिए उपाय किए गए हैं।
त) गंगा नदी के किनारे वनरोपण योजना: इसमें प्राकृतिक, कृषि और शहरी लैंडस्केप में वनरोपण, संरक्षण गतिविधि अर्थात नम भूमि, मृदा और जल प्रबंधन और अनुसंधान, जागरूकता एवं क्षमता निर्माण आदि शामिल है। कार्य की स्थिति निम्नानुसार है:
वित्त वर्ष 2016-17: एडवांस्ड मृदा कार्य - 3,486 हेक्टेयर, वनरोपण -1,36,759;
वित्त वर्ष 2017-18: 8,046 हेक्टेयर आयोजना; औषधीय पौधे - उत्तराखंड के 7 जिलों में।
(थ जन जागरूकता, संचार और गंगा मिशन के प्रति आउटरीच के लिए सूचना, शिक्षा और संचार कार्यकलापः
- 17 प्रमुख स्थानों पर 16-31 मार्च 2017 को गंगा स्वच्छता पखवाड़ा मनाया गया।
- कार्यकलापः पद यात्रा, श्रमदान, सांस्कृतिक कार्यक्रम, बच्चों के लिए चित्रकला प्रतियोगिता, टाक शो/डायलॉग, चित्र प्रदर्शनी इत्यादि।
- गंगा स्वच्छता संकल्प दिवसः 2 मई 2017 को मनाया गया।
- गंगा विचार मंच- एनएमसीजी द्वारा सृजित एक वालंटीयर समुह जागरूकता कार्यकलाप में सक्रिय रूप से अंतर्ग्रस्त है।
- गंगा के किनारे विद्यालयों में जागरूकता के लिए रोटरी के साथ समझौता ज्ञापन।
- नमामि गंगा कार्यक्रम के संबंध में समाचार पत्र, टीवी/रेडियो विज्ञापन, विशेष फीचर्ड लेखों और एडवरटोरियलों का प्रकाशन।
(16) भूमिजल
(क) कुछ भागों में अंधाधुंध भूमिजल विकास के कारण भूमिजल स्तरों में कमी, छिछले कुंओं का सूखना, कुंओं की धारणीयता में कमी, बढ़ी हुई ऊर्जा खपत, भूजल की गुणवत्ता में कमी, तटीय क्षेत्रों में समुद्री जल का प्रवेश, बहुत सी छोटी नदी में आधार प्रवाह में कमी, विद्युत और डीजल पंप सेटों इत्यादि के कारण सीओ 2 एमिशन फुटप्रिंट में वृद्धि हुई है।
(ख) सीजीडब्ल्यूबी ने देश के ~ 23 लाख वर्गमीटर कुल मानचित्र योग्य क्षेत्र में से वर्ष 2012-17 के दौरान 8.89 लाख वर्ग किमी में जलभृत मानचित्रिकरण के नवीन कार्यक्रम को प्रारंभ किया है। इसके व्यापक उद्देश्यों में जलभृत की लेटरल और वर्टिकल सीमा निर्धारित करना, जलभृत-वार संसाधन और उनकी गुणवत्ता के परिमाणीकरण के संदर्भ में क्षमता विकास का आकलन, जलभृत मानचित्र तैयार करना और आईडब्ल्यूआरएम फ्रेमवर्क के अंतर्गत कार्यान्वयन हेतु प्रबंधन योजना तैयार करना शामिल है। ध्यान 8 राज्यों में नामतः हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और बुंदेलखंड में प्राथमिकता युक्त जल की कमी वाले क्षेत्रों की ओर है। लगभग 5.890 लाख वर्ग किमी क्षेत्र के लिए जलभृत मानचित्र और प्रबंधन योजनाएं पहले ही पूरी हो चुकी हैं। अंतिम रूप से स्वीकार करने के पूर्व मानचित्र और प्रबंधन योजनाओं की तीन स्तर की व्यवस्था में समीक्षा की जाती है। वर्ष 2017-18 के दौरान 4.60 लाख वर्ग किमी (2017-20 के लिए लक्षित 13.74 लाख वर्ग किमी में से) को शामिल करने की परिकल्पना की गई है। जलभृत मानचित्रों तथा प्रबंधन योजनाओं को राज्य सरकार से साथ साझा किया जाता है।
(ग) भूजल संसाधन का विनियमन, विकास और प्रबंधनः भूजल के विनियमन के लिए मॉडल विधेयक- 2005 को राज्यों को परिचालित किया गया, अब तक 15 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों ने मॉडल विधेयक के आधार पर विधान अधिनियमित किए। शहरी क्षेत्रों के लिए भवन उपविधि/नियमों/विनियमों में शामिल करके 30 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा रूफटॉप वर्षा जल संचयन को अनिवार्य बना दिया गया। व्यापक परामर्श के लिए संशोधित मॉडल विधेयक-2017, राज्य स्तर की कार्यशाला आयोजित की गई और मई 2017 में डॉ. मिहिर शाह द्वारा नीति आयोग को एक प्रस्तुति भेजी गई। मॉडल विधेयक 2017 नीति आयोग के विचाराधीन है।
(17) वॉप्कोसः एक मिनी रत्न-1 कम्पनी वॉप्कोस लिमिटेड परामर्श और इंजीनियरी, प्रापण और निर्माण में एक सार्वभौमिक नेतृत्व का कार्य करती है और जल, ऊर्जा और अवसंरचना के क्षेत्र में स्थाई विकास के लिए समेकित और कस्टमाईज्ड समाधान प्रदान कर रही है। हाल ही में इसने अफगान-भारत मित्रता बांध जिसका नाम सलमा बांध है, सफलतापूर्वक पूरा किया है। इस परियोजना का उद्धाटन 4 जून, 2016 को भारत के माननीय प्रधानमंत्री द्वारा किया गया।