विशेष सेवा और सुविधाएँ12-August, 2016 16:18 IST
अमर शहीद महाराणा बख्तावरसिंह

अमर शहीद महाराणा बख्तावरसिंह

      प्रेमविजय पाटिल

 

मध्यप्रदेश के धार जिले के अमझेरा कस्बे के अमर शहीद महाराणा बख्तावरसिंह को मालवा क्षेत्र में विशेष रूप से नमन किया जाता है। मालवा की धरती पर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों से मुकाबला करने वाले वे ऐसे नेतृत्वकर्ता थे जिन्होंने अंग्रेजों की सत्ता की नींव को कमजोर कर दिया था। उन्होंने राजशाही में जीने वाले लोगों को भी देश के लिए बलिदान देने की प्रेरणा दी। लंबे संघर्ष के बाद छलपूर्वक अंग्रेजों ने उन्हें कैद कर लिया। 10फरवरी 1858 में इंदौर के महाराजा यशवंत चिकित्सालय परिसर के एक नीम के पेड़ पर उन्हें फांसी पर लटका दिया। इस महान बलिदानी की प्रेरणा से आदिवासी अंचल के कई सैकड़ों लोगों ने अपने प्राण देश की खातिर त्याग दिए थे। मध्यप्रदेश सरकार ने अमझेरा स्थित राणा बख्तावरसिंह के किले को राज्य संरक्षित इमारत घोषित किया है।

 

स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा बख्तावरसिंह का जन्म अमझेरा के महाराजा अजीतसिंह एवं महारानी इन्द्रकुंवर की संतान  के रूप में 14 दिसम्बर सन् 1824 को हुआ था। पिता महाराव अजीतसिंहजी की मृत्यु के पश्चात् 21दिसंबर 1831 में मात्र सात वर्ष की आयु में राव बख्तावरसिंह सिंहासनारूढ़ हुए। इंदौर से शिक्षा समाप्ति के पश्चात् बख्तावरसिंहजी स्थाई रूप से अमझेरा लौट आये।

 

सन् 1856 में अंग्रेजों को संपूर्ण मालवा एवं गुजरात से बाहर खदेड़ने के उद्देश्य से अंग्रेजों के विरूद्ध सामूहिक क्रान्ति की योजना तैयार की थी। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमझेरा के राजा बख्तावरसिंह ही एकमात्र ऐसे योद्धा रहे हैं जिन्होंने मालवा क्षेत्र में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका था। अमझेरा की ब्रिटिश विरोधी तैयारियों की भनक अंग्रेजों को मिलने से उन्होंने समीपस्थ भोपावर एवं सरदारपुर में अपनी सैन्य छावनियां कायम कर ली थी।

 

अमझेरा की सेना ने सर्वप्रथम 2 जुलाई 1857 को अंग्रेजों के विरूद्ध क्रान्ति का शंखनाद किया । इस दिन महाराव बख्तावरसिंहजी के मार्गदर्शन में अमझेरा के क्रान्तिकारियों ने दो तोपेंबंदूकेंपैदल सैनिकअश्व सैनिकों ने ब्रिटिश छावनी भोपावर की ओर कूच किया। अमझेरा की जनता ने स्वतंत्रता के दीवाने सैनिकों का पलक पावड़े बिछाकर मंगल आरती की तथा विजय पथ पर विदा किया। क्रांतिसेना रात दस बजे भोपावर के पास पहुंच गई लेकिन रात्रि में आक्रमण उचित न समझकर पौ फटने का इंतजार करने लगी। 3 जुलाई की सुबह अमझेरा की सेना ने जब भोपावर छावनी में प्रवेश किया तो एक भी अंग्रेज अधिकारी या सैनिक से सामना नहीं हुआ । क्रांतिकारियों ने बचे हुए कर्मचारियों को अपने कब्जे में लेकर समस्त शासकीय रेकार्ड जला डालाशस्त्रागार-कोषागार को लूटकर यूनियन जेक झंडा उतारकर फाड़ डाला।

 

महाराजा बख्तावरसिंहजी द्वारा प्रज्ज्वलित स्वाधीनता संग्राम की ज्वाला अब एक भीषण अग्नि का रूप धारण कर महू आगर नीमचमहिदपुरमंडलेश्वर आदि सैन्य छावनियों में फैल गई। वहां के सैनिक भी अमझेरा के राजा के समर्थन में विद्रोह को तैयार हुएजिससे मालवा क्षेत्र में ब्रिटिश सत्ता की प्रतिष्ठा को गहरा सदमा पहुंचा।

 

अमझेरा के राजा की गतिविधियों को रोकने के लिये अंग्रेजों ने सर्वप्रथम 31 अक्टूबर 1857 को धार किले पर आक्रमण कर उसे अपने कब्जे में ले लिया। 5 नवंबर 1857 को कर्नल डूरंड ने अमझेरा पर आक्रमण करने की योजना बनाई लेकिन ब्रिटिश सेना में अमझेरा की क्रांतिसेना के आतंक व दबदबे के कारण यह सेना आगे नहीं बढ़ी तो भोपावर से भाग खड़े हुए। हालांकि बाद में लेफ्टिनेन्ट हचिन्सन के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना की एक पूरी बटालियन 8 नवम्बर 1857 को अमझेरा भेजी गई।

 

उधर धार में रूके कर्नल डूरण्ड को भी बख्तावरसिंहजी के लालगढ़ में होने की सूचना प्राप्त हो चुकी थी । वह जानता था कि बख्तावरसिंह को सीधे गिरफ्तार करना खतरे से खाली नहीं है अतः उसने चाल चलकर अमझेरा रियासत के एक-दो प्रभावशाली लोगों को जागीर का लालच देकर उनके माध्यम से बख्तावरसिंह को संधिवार्ता के लिये धार लाने हेतु लालगढ़ भेजा। इन मध्यस्थों ने भोले भाले अमझेरा नरेश को अनेक प्रकार से भ्रमित कर अंग्रेजों से संधिवार्ता करने धार चलने हेतु राजी कर लिया।

 

11 नवम्बर 1857 को अपने सैनिकों के मना करने के बाद भी यह मालव वीर अंग्रेजों के फैलाये जाल में फंसकर 12 विश्वसनीय अंगरक्षकों के साथ लालगढ़ किले से निकले। रास्ते में इन्हें योजनाबद्ध तरीके से हैदराबाद कैवेलरी की घुड़सवार टुकड़ी ने रोक लिया। अंगरक्षकों के विरोध के बाद भी इन्हें गिरफ्तार कर 13नवम्बर 1857 को महू भेज दिया। राघोगढ़ ( देवास ) के ठाकुर दौलतसिंह को जब बख्तावरसिंहजी की धोखे से गिरफ्तारी की सूचना मिली तो उन्होंने महू छावनी पर आक्रमण कर अमझेरा नरेश को छुड़वाने का प्रयास किया लेकिन इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली। ब्रिटिश अधिकारियों ने निर्णय लिया कि अमझेरा नरेश को महू रखने से क्रांतिकारियों के चौतरफा हमले हो सकते हैं और वे इन्हें मुक्त करवाने की हरसंभव कोशिष करेगें अतैव महू से बख्तावरसिंह को इन्दौर भेज दिया गया।

 

महाराजा बख्तावरसिंहजी को इन्दौर जेल में बन्द रखकर घोर यातनाएं दी गई। अंग्रेजों ने उनके साथ राजोचित व्यवहार नहीं किया। कुछ दिनों तक तो उनकी सेवा में एक-दो नौकर लगाये गये थे लेकिन बाद में उन्हें भी हटा लिया गया। बिछौना बिछाने और पानी पीने का काम स्वयं अमझेरा नरेश को अपने हाथों से करना पड़ता था। भारत की आजादी के इतिहास में अमझेरा के राजा ही एक मात्र ऐसे राजा रहे हैं जिन्हें अंग्रेजों ने कैद के दौरान घोर यातनाएं देकर झुकाना चाहालेकिन यह वीर नहीं झुका।

 

21 दिसम्बर 1857 को इन्दौर रेजिडेन्सी में ग्वालियरइन्दौरदेवासधारदतियाबुंदेलखंड आदि राज्यों के वकीलों की उपस्थिति में कार्रवाई हुई। अमझेरा नरेश ने अपने बचाव का कोई भी प्रयास नहीं किया और न ही अपनी ओर से अपने पूर्वजों की अंग्रेजों के प्रति वफादारी प्रकट की।

 

राबर्ट हेमिल्टन बख्तावरसिंहजी को असीरगढ़ के किले में एक बंदी की हैसियत से भेजने का निर्णय ले चुके थे लेकिन फरवरी 1858 के प्रथम सप्ताह में ब्रिटिश सत्ता के गलियारों में यह हवा गर्म होने लगी कि अमझेरा के राजा को फांसी होगी। 10 फरवरी 1858 को अमझेरा नरेश को अलसुबह इंदौर में फांसी दे दी गई.

 

10 फरवरी को उनके बलिदान दिवस पर अमझेरा में बड़े स्तर पर आयोजन कर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। प्रदेश सरकार ने यहां पर उनके किले को संरक्षित इमारत घोषित किया है। पुरातत्व विभाग द्वारा इस ईमारत की देखभाल की जा रही है। (पसूका)   

 * युवा पत्रकारधार

 

 

 

 


(Release ID :53540)