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26 जुलाई 2016 को, विंग कमांडर रवीन्द्र अहलावत को 'रेंज इंस्ट्रक्शनल तकनीक' (आरआईटी) मिराज 2000 प्रशिक्षक विमान में फ्रंट कॉकपिट में बैठकर पोखरन रेंज पर विमान के कप्तान के रूप में ले जाने के लिए अधिकृत किया गया था। "पुल अप अटैक" सर्किट ले जाने के दौरान, 500 फीट की ऊंचाई पर उच्च गति पर उड़ते हुए एक मोड़ पर उनके विमान से एक पक्षी टकरा गया। इसके गंभीर प्रभाव से कैनोपी पर्सपेक्सी पूरी तरह से टूट गई और वह पक्षी विग कमांडर अहलावत से टकराया, जिससे उनके हेलमेट को नुकसान पहुंचने के अलावा अहलावत के चेहरा, गर्दन, हाथ और छाती भी घायल हो गए। उनके शरीर से बहते हुए खून ने उन्हें लगभग अक्षम कर दिया था। उस पक्षी के टकराने से सामने और पीछे के कॉकपिट के बीच लगा शीशे का विभाजक भी टूट गया। इस टकराव के प्रभाव से फ्रंट पायलट इजेक्शन सिस्टम भी क्षतिग्रस्त हो गया।
चोटों के कारण उनके चेहरे से खून बह रहा था। विंग कमांडर अहलावत को केवल अपनी बाईं आंख से ही कुछ-कुछ दिखाई दे रहा था। उनकी चोटों की प्रकृति गंभीर थी। विमान काफी नीचे उड़ रहा था, उन्होंने पोखरन रेंज के आसपास के गांव के लोगों को बचाने के लिए सभी आपातकालीन कार्रवाई को ठीक तरह से पूरा किया। रिकवरी के दौरान, पीछे का पायलट पर्सपेक्सी के कारण रनवे को नहीं देख सकता था। फ्रंट पायलट द्वारा लैंडिंग किए बिना ही विमान को छोड़ देना था। इजेक्शन प्रणाली खराब होने के कारण इस प्रणाली के कार्य में असफल होने के कई कारण थे। लेकिन विंग कमांडर अहलावत ने ‘सर्विस-बिफोर- सेल्फ’ के मूल्य अपनाते हुए, बहादुरी का परिचय देते हुए और विमान पर नियंत्रण रखते हुए एयरफोर्स बेस के नजदीकी रनवे पर अपने विमान को सुरक्षित उतारने में सफलता हासिल की। इस प्रकार उन्होंने बहुमूल्य राष्ट्रीय परिसंपत्ति और अमूल्य जीवन बचाए।
वीर कमांडर रवीन्द्र अहलावत को उनकी इस बहादुरी के लिए वायु सेना पदक (वीरता) से सम्मानित करने का निर्णय लिया गया है।
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वीके/आईपीएस/एसकेपी – 3396